
आप सभी को आपके अपने रवि किशन शुक्ल का प्रणाम . फिलहाल जोधपुर की ठंढी के बीच विक्रम भट्ट साहब की फिल्म डेंजरस इश्क की शूटिंग में व्यस्त हूँ और यही से अपने दिल की बात आपसे बयान कर रहा हूँ.आज का दिन ना सिर्फ देश के लिए बल्कि हम भोजपुरी फिल्म जगत वालों के लिए भी ख़ास है क्योंकि इस दिन देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती है . बिहार के सिवान के जीरादेई गाँव में एक मध्यम वर्ग के परिवार में जन्म लेने वाले राजेंद्र बाबु मेरी नज़र में भोजपुरी क्षेत्र के सबसे प्रकांड विद्वान् थे . मैंने पढ़ा था बचपन में उनके बारे में की कोलकाता के जिस प्रेसिडेंसी कोलेज में वो पढ़ते थे वहाँ के शिक्षक भी उन्हें खुद से ज्यादा काबिल समझते थे . सादा जीवन उच्च विचार के प्रतिमूर्ति राजेंद्र बाबू के बारे में उनकी परीक्षा पुस्तिका की जांच करने वाले शिक्षक ने लिखा था की छात्र शिक्षक से कहीं जायदा जानकार है. यहाँ इस बात का जिक्र करने का मेरा मकसद यह है की हमारी धरती ने एक से बढ़कर एक माटी के लाल को जन्म दिया है जिन्होंने अपने अपने क्षेत्र में अपने कार्यों से पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. बात राजेन्द्र बाबु की कर रहा हूँ तो शायद कम लोगो को ही पता होगा की जिस भोजपुरी फिल्म जगत में लाखो लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काम कर अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं इसकी शुरुवात राजेन्द्र बाबु ने ही करवाई थी. राजेन्द्र बाबु का भोजपुरी भाषा के प्रति प्रेम जग जाहिर है . उस दौर में भोजपुरी फिल्मे बनती नहीं थी . भोजपुरी फिल्मो के पहली फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ थी और इस फिल्म की कहानी तैयार की थी भोजपुरी फिल्मो के भीष्म पितामह कहे जाने वाले नाजीर हुसैन साहब ने. नाजिर साहब भोजपुरी भाषा में फिल्म बनाने को आतुर थे और उन्हें इसकी प्रेरणा मिली थी राजेंद्र बाबु से . राजेंद्र बाबु ने उस समय उन्हें कहा था की अगर संयम और हिम्मत है तो आगे बढ़ो हम आपके साथ है. सबसे दिलचस्प बात तो ये है की इस फिल्म के निर्माण का बीड़ा उठाने वाले विश्व नाथ प्रसाद शाहाबादी को नाजीर हुसैन से मिलवाया भी था राजेंद्र बाबु ने ही . १६ फरवरी १९६१ को खुद राजेन्द्र बाबु ने ही पहली फिल्म का मुहूर्त पटना के शहीद स्मारक के पास किया था. अब आप लोगो को पता चल ही गया होगा की आज जिस फिल्म जगत की बदौलत हम अपना नाम रोशन कर रहे हैं वो राजेंद्र बाबु की ही देन है. आज भले ही फिल्म जगत में इसकी कोई चर्चा नहीं होती हो लेकिन हमें भोजपुरिया माटी के लाल राजेंद्र बाबु के इस देन पर गौरवान्वित होना चाहिए . चलते चलते मैं आपसे पिछले दिनों की एक अद्भुत संस्मरण से आपको अवगत कराना चाहता हूँ. मेरी बड़ी चाहत थी की मैं अजमेर शरीफ जाकर ख्वाजा के दरबार में चादर चढाऊं , भले ही मैं ब्रह्मण का बेटा हूँ और महादेव का भक्त लेकिन मेरी आस्था सभी धर्मो में है क्योंकि सभी धर्म प्यार और भाईचारा सिखाता है. जोधपुर में शूटिंग करने के कारण वहाँ जाने की मेरी इच्छा पूरी हो गयी . मैंने चादर चढ़ा कर कई घंटे वहाँ बिताये , काफी सुकून महसूस किया. मुझे कुछ वैसी ही अनुभूति मिली जैसा की किसी मंदिर में जाकर मिलती है. मैं ब्राह्मण का बेटा हूँ, महादेव का परम भक्त हूँ लेकिन सभी धर्मो में मेरी अपार श्रधा और आस्था है क्योंकि सभी धर्मो का सार है प्यार और भाई चारा और वैसे भी मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना . चलते चलते मैं मुंबई के अपने मिडिया से जुड़े भाई बहनों से माफ़ी चाहता हूँ की मैं अपनी फिल्म चालीस चौरासी के फर्स्ट लुक के मौके पर उनके समक्ष मौजूद नहीं था. आप मेरा ये ब्लॉग मुंबई से प्रकाशित हिंदी दैनिक हमारा महानगर के रविवार के विशेषांक में भी पढ़ सकते हैं. अगले सप्ताह फिर मुलाकात होगी
आपका
रवि किशन
सादर प्रणाम.
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