Monday 26 September 2011

जय हो मातृशक्ति की

मातृशक्ति की जय हो मेरे सभी भोजपुरिया भाइयों एवं बहनों को आपके अपने रविकिशन शुक्ल का प्रणाम . नवरात्र शुरू होने में मात्र तीन दिन बचे हैं, पूरा देश माँ दुर्गा की आराधना की तयारी में लगा है, चारो ओर खुशियाँ ही खुशियाँ हैं, भक्ति का सैलाब उमड़ रहा है . या यूँ कहें की त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है. जब भी नवरात्र का त्योहार आता है तब तब मेरे जेहन में यह ख्याल अवश्य आता है की हम कितने खुशनसीब है क्योंकि हमने उस देश में जन्म लिया जहाँ मातृशक्ति की पूजा होती है . हमारा देश दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जिसे हम माँ कह कर पुकारते हैं. धन्य है हमारा देश जहाँ मातृशक्ति की पूजा होती है। हम नादान लोग कभी कभी मातृशक्ति की महानता को पहचान नही पाते हैं, लेकिन हकीकत यही है की पूरी दुनिया ही मातृशक्ति पर टिकी हुई है। आज के दौर में मदर टेरेसा, इंदिरा गाँधी, सहित कई ऐसी महिलाए हैं, जिन्होंने नि:स्वार्थ भाव से सेवा की है, ठीक उसी तरह जैसे हर माँ अपने बच्चो का देखभाल करती है, उसकी मांग पूरी करने के लिए प्रयत्नशील रहती है। दुनिया का कोई भी इंसान यह नही कह सकता की एक माँ का अपने बच्चो के प्यार में, लालन-पालन में, देखभाल में कोई लालच छिपा रहता है। हाँ कभी कभी कोई मजबूरी कुछ पल के लिए हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती है लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए की ये उनका हक़ है, अधिकार है। हो सकता है की आपको लगे की मैं किताबी बातें बयां कर रहा हूँ, लेकिन अगर हम सभी मातृशक्ति की महानता को पहचाने और इसे अपने जीवन में उतार लें तो देश में कोई वृधा आश्रम नही होगा , कोई माँ दूर गाँव में बैठ अपने बच्चो को याद कर रोएगी नही। माफ़ करना भाइयो मैं जरा भावना में बह कर मुद्दे से भटक गया था। दरअसल मुझे पढने का काफ़ी शौक है, मेरी सुबह ढेर सारे अखबारों को पढने में ही बीतती है और आए दिन हमें मातृशक्ति की अवहेलना की खबरे मिलती रहती है। मुझे पता है आपमें से लाखो लोगो को आज गाँव में अपनी माँ की अवश्य याद आ रही होगी, घर में बनने वाले पकवानों की खुशबू आप यहाँ मुंबई में भी महसूस कर रहे होंगे . कुछ ऐसी ही भावना मेरी भी है . मेरी मान मेरे गाँव में हैं जबकि पिताजी फिलहाल मुंबई में हैं. माँ भगवती की कृपा से अब वो बिल्कुल ठीक हो चुके हैं. वो गाँव जाने की जिद कर रहे हैं लेकिन अभी कुछ दिन और उनकी सेवा का मौका मुझे मिलेगा . आपलोगों को तो पता ही है की नवरात्र और दुर्गा पूजा का त्यौहार मनाने के पीछे कई सारी कथाये हैं , माँ दुर्गा की रंच मात्र कृपा पाकर न जाने कितनों ने अपना जीवन सफल कर लिया आज उन्हीं की कृपा के परिणामस्वरूप स्वयं पूजित हो रहे है माँ के बेटों को किसी प्रकार से कोई कठिनाई कभी नहीं होती है उनके अन्दर माँ ऐसी अपार शक्ति भर देती हैं कि बालक को किसी भी देशकाल, किसी भी युगधर्म, किसी भी लोक परलोक, में तीनों कालों में किसी प्रकार का भय, कष्ट, विपदा, और अभावों का सामना नहीं करना पड़ता। वह सर्वज्ञ एवं स्वयं नियंता बनकर सर्वश्रेष्ठ हो जाता है और फिर मां की सत्ता, मां की सेवा-भक्ति के सिवा उसके समक्ष कोई और लक्ष्य नहीं रहता । इसी माँ दुर्गा ने जन कल्याण के लिए महिसासुर नाम के एक दानव का इस दौरान वध किया था। ऐसी मान्यता है की जगत के सुख के लिए माँ नवरात्र के दौरान धरती पर विचरण करती है । माँ दुर्गा के कई रूप हैं उनमे से एक रूप है माँ वैष्णो देवी का। कहा जाता है की जब लंकापति रावण, माँ सीता का हरण कर लंका ले गए और भगवान् श्रीराम के पास युद्ध के अलावा और कोई विकल्प नही बचा तो उन्होंने लंका पर हमला कर दिया। माँ वैष्णो देवी ने तब नौ दिनों तक उपवास रखकर भगवान् राम के विजय की कामना की और दसवे दिन जब रावण वध हुआ तब माता ने फलाहार कर व्रत का समापन किया। नवरात्री मनाने का बड़ा कारण ये भी है। रावण वध असत्य पर सत्य की विजय का सबसे बड़ा उधाहरण है। रावण एक ज्ञानी पुरूष थे, भगवान् शंकर के भक्त थे। कहा तो ये भी जाता है की मोक्ष प्राप्ति के लिए ही उन्होंने भगवान् राम के हाथो अपना जीवन खोने का फैसला किया था, लेकिन रावण ने जो रास्ता अपनाया वह दानवी प्रक्रिया थी। भगवान् राम ने उनका वध कर सत्यमेव जयते को चरितार्थ किया। सत्यमेव जयते - प्राचीन भारतीय साहित्य में मुंडकोपनिषद से लिया गया यह सूत्र आज भी मानव जाति की दिशा और दशा निर्धारण करता है। महाभारत काल में भी भगवान् श्रीकृष्णकी अगुवाई में पाँच पांडवो की, सौ कौरवो की अट्ठारह अक्षोनी की सेना पर विजय को असत्य पर सत्य की विजय बताया गया। कालांतर में भगवान् बुद्ध और महावीर ने भी सत्य को पंचशील और पॉँच महाव्रत का प्रमुख अंग माना । कहने का मतलव ये है की ढाई अक्षर से निर्मित ये शब्द उतना ही सरल है जितना की प्यार लेकिन सत्य की राह आसन नही होती है। ढेर सारी कठिनाइयां आती रहती है आखिरकार जीत सत्य की ही होती है। अर्थात हमें हर हाल में सत्य की राह पर चलना चाहिए । पूरी दुनिया अगर ऐसा करे तो अपने पराये , उंच-नीच , जाती-धर्म का भेदभाव समाप्त हो जाएगा । आइये हम और आप मिलकर माँ दुर्गा, या अपने अपने आराध्य देव, खुदा, या गुरु की शपथ ले की जीवन को सत्य के लिए समर्पित कर दे । हालंकि आज के युग में ऐसा सम्भव नही है लेकिन हम इंसान कोशिश तो कर ही सकते हैं। अगले रविवार फिर आपसे मुलाकात होगी ... आप मेरे दिल की बात को मुंबई के लोकप्रिय हिंदी दैनिक हमारा महानगर में हर रविवार पढ़ सकते हैं
आपका अपना
रवि किशन

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